केवल पलवल ही नहीं, किशनगंज और अररिया भी हैं...

हरियाणा के पलवल में एक मस्जिद के निर्माण में आतंकी संगठनों का धन लगा होने का सुरक्षा एजेंसियों का आरोप कोई नई बात नहीं है. सही मायने में ऐसा तो पूरे देश में हो रहा है. उदाहरण के तौर पर बिहार को लें जहाँ पिछले दो दशक के दौरान नेपाल से लगे सीमावर्ती जिलों में मस्जिदों की बाढ़ सी आ गयी है. ये सभी मस्जिदें केवल इबादत के लिए है या फिर यहाँ कुछ और होता है, यह तो ख़ुफ़िया एजेंसियां ही बता सकती हैं. परन्तु इतना तो तय है कि इस इलाके में अचानक बढ़ी मुस्लिमों की आबादी और मस्जिदों का जाल यूँ ही नहीं बल्कि किसी उद्देश्य से ही बुनी जा रही है!



हमें यह स्वीकारने में कोई अफ़सोस नहीं होना चाहिए कि हमारा लोकतान्त्रिक ढ़ांचा विरोधाभासों से भरा पड़ा है. कभी धर्मनिरपेक्षता के बहाने, कभी मानवता के बहाने, कभी आस्था के बहाने, कभी अभिव्यक्ति के बहाने तो कभी वोट बैंक के बहाने न केवल हम बल्कि हमारा समाज, हमारी सरकार और हमारे राजनीतिक दल ऐसे मुद्दों से आँख मोड़ लेते हैं जिसका परिणाम भविष्य में खतरनाक तौर पर हमारे सामने होता है. अभी वर्तमान में असम में बंगलादेशी घुसपैठियों को पहचानने और निकालने के मुद्दे पर जो संग्राम मचा है वह कोई अचानक घटी घटना नहीं है. ये मुद्दे तो वर्षों से सरकार, सभी राजनीतिक पार्टियाँ और वहां की जनता की जानकारी में फलते-फूलते रहे हैं. अंततः इस मुद्दे पर हंगामा तब मचा जब असम में जनसंख्या का अनुपात तेजी से बदलने लगा और असम के मूल निवासी अल्पसंख्यक श्रेणी की दहलीज पर पहुँच गए. इतना ही नहीं, असम में हालात तो इतने ख़राब हो गए थे कि बंगलादेशी घुसपैठियों के आतंक से कुछ खास क्षेत्र के मूल निवासियों को अपना घरबार छोड़कर विस्थापितों की जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ा था. केवल असम ही नहीं, जम्मू-कश्मीर का भी उदाहरण हम सबके सामने है कि कैसे कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जीना पड़ रहा है.


अब जहाँ तक देश के कुछ खास इलाकों में मुसलमानों की तेजी से बढ़ती आबादी और साथ में धड़ाधड़ हो रहे मस्जिदों के निर्माण से जो सवाल उठ रहे हैं, वह लाजिमी है. ऐसा भी नहीं है कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी के पीछे उनके बीच तेज जन्मदर का होना है. वास्तव में मुसलमानों की तेज गति से बढ़ती आबादी की वजह बड़ी संख्या में बंग्लादेशी और रोहंगिया मुसलमानों का चोरी-छिपे भारत में आना और मुस्लिम आबादी में घुलमिल कर यहाँ बस जाना है. असम हो या पश्चिम बंगाल, बिहार हो या दिल्ली, यहाँ जिन ख़ास जगहों पर मुस्लिम आबादी में तेजी से बढ़ने का ट्रेंड दिखा है उसकी बस एक ही वजह है, और वह है बंग्लादेशी और रोहंगिया मुसलमान. देश में आपराधिक गतिविधियों के बढ़ने के पीछे भी ये ही बेरोज़गार बंग्लादेशी और रोहंगिया मुसलमान हैं.


पलवल की मस्जिद में पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों का धन लगा होने की ख़ुफ़िया सूचना देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है. मस्जिद की आड़ में देशद्रोही गतिविधियों को अंजाम देने की आतंकी संगठनों की यह एक नई और खतरनाक साजिश है. आतंकियों के छिपने और हथियारों-विस्फोटकों को जमा करने के लिए मस्जिद एक सुरक्षित स्थान हो सकता है. संभवतः आतंकी संगठनों की इस साजिश के पीछे उसकी यही मंशा हो. अगर ये आतंकी संगठन अपने इस प्रकार के मिशन में कुछ हद तक भी सफल हो जाते हैं तो देश की सुरक्षा व्यवस्था में एक बड़ी सेंधमारी और चूक होगी.


मुस्लिमों की आबादी और मस्जिदों की बढ़ती संख्या के मामले में पहली गौर करने वाली बात है कि यह सब उस विशेष क्षेत्र में हो रहा है जो बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे हैं. असम और बंगाल में बढ़ती घुसपैठियों की तादाद के बाद बिहार के वे सीमावर्ती जिले हैं जहाँ की मुस्लिम आबादी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है. ये जिले हैं किशनगंज, अररिया, दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी. दूसरी गौर करने वाली बात इन इलाकों में हाल के वर्षों में आई मस्जिदों की बाढ़ है और वो भी खासकर मुख्य सड़क मार्ग और रेलवे लाइन के किनारे. स्पष्ट है, दुश्मनों की साजिश गंभीर है. सड़क मार्ग और रेल मार्ग को निशाना बनाना आतंकियों के लिए सबसे आसान टारगेट है. इस प्रकार की साजिश का उदाहरण गुजरात के गोधरा से बेहतर और क्या हो सकता है जहाँ उपद्रवी ताकतों ने पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगनाओं के इशारे पर यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन को आग के हवाले कर दिया था. फिर क्या गारंटी है कि आगे ऐसी वारदात किसी और जगह नहीं होंगे.


अब सवाल यह उठता है कि क्या मुस्लिमों की बढ़ती आबादी और मस्जिदों की बढ़ती संख्या के खेल से देश-प्रदेश की सरकार और खुफिया एजेंसियां अनजान है या अनजान बनी रही हैं? इस सवाल का जबाव उस राष्ट्रद्रोही राजनीतिक मानसिकता में छिपा है जो वोट बटोरने के लिए देश की सुरक्षा से आज तक खिलवाड़ करता रहा है. असम से अवैध बंग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर करने के लिए किसी सरकार ने नहीं बल्कि न्यायालय ने इच्छाशक्ति दिखाई है. बंगाल में भी भारी संख्या में अवैध बंग्लादेशी रह रहे हैं. बिहार, दिल्ली और हरियाणा का मेवात क्षेत्र भी अवैध बंग्लादेशी से आबाद हो रहा है. इन राज्यों की अभी तक की सरकारें सिर्फ वोट बैंक के लिए इस खतरे से आँखें बंद की हुई थी. हमें ज्ञात होना चाहिए कि यह कोई स्वतः घटने वाली घटना नहीं है बल्कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का ही एक नया स्वरुप है.


देश के कुछ खास इलाकों में मुस्लिम आबादी में वृद्धि और वहां फैलते मस्जिदों के जाल से स्पष्ट है कि आतंक के सभी खेलों में मात खा चुका पाकिस्तान अब भारत में उस गृहयुद्ध की तैयारी में जुट गया है जो यहाँ की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों की विनाशकारी राजनीति के परिणामस्वरूप ही संभव हो सकता है. अतः अभी भी समय है कि ऐसी राजनीतिक पार्टियाँ राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर अवैध बंग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध एकजुट हो जाएँ और उन्हें बाहर निकालने के मुद्दे पर एकमत से कोई कारगर समाधान निकालें.


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