मुख्य न्यायाधीश कहीं विवादों से तो नहीं बचना चाहते हैं?

सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर अयोध्या मुद्दे पर सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया गया है. टालने की इस प्रक्रिया के आखिर संकेत क्या हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश को मुकद्दमे के अंतिम फैसले का पुर्वानुमान हो चुका है और वे फैसले पर होनेवाले विवादों से बचना चाहते हैं?



अयोध्या में राम मंदिर का मसला एक बार फिर से दिलचस्प मोड़ पर है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकद्दमे को एक बार फिर से सुनवाई के लिए दो महीने के लिए टाल दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से भले ही आमतौर पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हो परन्तु देश की राजनीति की दिशा बदलने वाला यह मुद्दा एक बार फिर से अपना एक नया इतिहास लिखने की ओर अग्रसर जरूर हो गया है. इस सम्बन्ध में दिलचस्प यह भी है कि इस नये इतिहास के कथानक में मुख्य भूमिका में केंद्र और सम्बंधित राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और इसके प्रमुख नेता हैं और इन नेताओं में जो खास हैं और जिनपर सभी की नज़रें टिकी हुई हैं वे हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. हालाँकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं में कभी भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का जिक्र नहीं किया है परन्तु पूरी दुनिया जानती है कि वह जिस पार्टी से ताल्लुक रखते हैं उस पार्टी की केंद्र में और राज्यों में सत्ता प्राप्ति की वजह भी राम मंदिर आन्दोलन ही रही है. बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के इस कदम का चुनाव से पूर्व क्या राजनीतिक प्रभाव पड़ता है यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है परन्तु इस सम्बन्ध में गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि क्यों सुप्रीम कोर्ट में यह मामला वर्षों से लटका पड़ा है और जब भी सुनवाई का वक़्त आता है तो किसी न किसी बहाने सुनवाई की तारीख को बढ़ा दिया जाता रहा है?