विश्वयुद्ध की आहट!

शीत युद्ध की दौर के बाद रूस ने अपने सबसे बड़े सैन्य अभ्यास 'वोस्तोक 2018' का आगाज कर एक तरह से संकेत दे दिया है कि दुनिया कभी भी विनाशक युद्ध के आगोश में समा सकता है.



इस वक़्त रूस अपना अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास 'वोस्तोक 2018' कर पूरी दुनिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है. सैन्य और रक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ न केवल रूस के इस कदम से हैरान हैं बल्कि अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि यह सब एक तरह से त्रितीय विश्वयुद्ध की तैयारी के समान है. रूस का यह युद्ध अभ्यास इसलिए भी संदेह के घेरे में है क्योंकि इसमें चीन भी भागीदारी कर रहा है. वर्तमान में यह किसी से नहीं छिपा है कि वैश्विक राजनीति में चीन अपनी धमक बढ़ाने के लिए न केवल अपने पड़ोसी देशों को बल्कि अमेरिका और यूरोप को भी धौंस दिखाने से बाज नहीं आ रहा है. फिर मध्य और पश्चिमी एशिया में रूस के साथ अमेरिका की दखलंदाजी और फिर दोनों में इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की होड़ भी किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में रूस और चीन के इस सैन्य अभ्यास से स्पष्ट है कि अपरोक्ष तौर पर और अन्दर-ही-अन्दर युद्ध की तैयारी चल रही है और यह कभी भी एक सुसुप्त ज्वालामुखी की तरह फट सकता है.


चीन की चालबाजी


सभी जानते हैं कि चीन विश्व में एक महाशक्ति बनने का मंसूबा पाले हुए है. अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए वह न केवल दक्षिण चीन सागर में अपनी पैठ बढ़ा रहा है बल्कि एशिया में अपने सबसे बड़े प्रतियोगी भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और मालद्वीव की जमीन पर भी व्यापार, सहयोग व सहायता की आड़ में अपने सैन्य और असैन्य गतिविधियों को तेजी से बढ़ा रहा है. इतना ही नहीं, मध्य एशिया में अपनी पहुंच बनाने के लिए चीन ने पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाकर जहाँ ईरान के नजदीक ग्वादर बंदरगाह पर अपना पैर जमाया है वहीँ 'वन बेल्ट वन रोड' के बहाने चीन से ग्वादर बंदरगाह तक सड़क का भी निर्माण कर रहा है. दुनिया को इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि 'वन बेल्ट वन रोड' चीन की उस चालबाजी का हिस्सा है जिसका उपयोग वह भविष्य में अपने सामरिक गतिविधियों के लिए करेगा. आज एशिया और अफ्रीका के देशों में वह जो भी निवेश कर रहा है उसका अंततः एक ही उद्देश्य है और वह है सामरिक शक्ति में वृद्धि. 


अमेरिका की छटपटाहट


यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प के शासनकाल में अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मानक पर बुरी तरह से विफल रहा है. ट्रम्प की ढुलमुल विदेश नीति का परिणाम यह है कि न तो उसके पड़ोसियों से संबंध अच्छे हैं और न ही यूरोप के कई देशों से. मध्य एशिया, अरब और दक्षिण एशिया में भी रूस की रणनीति और कूटनीति के सामने वह आज पस्त है. सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद का रूस के सहयोग से मजबूत होना और अमेरिका समर्थित विद्रोहियों का मैदान छोड़कर भागना, अमेरिका की एक नैतिक हार मानी जानी चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के शासनकाल में एक लंबे समय के बाद ईरान के साथ अमेरिका के शुरू हुए सौहार्दपूर्ण संबंध को ट्रम्प ने एक ही झटके में खत्म कर दिया है. अरब देशों की राजनीति में भी अमेरिका अलग-थलग पड़ता जा रहा है. पाकिस्तान भी आज दिनोंदिन अमेरिका से दूर होता जा रहा है और चीन के साथ उसकी यारी बढ़ती जा रही है. अफगानिस्तान अमेरिका के लिए गले की हड्डी बना हुआ है. एक गैर-यूरोपियन नाटो देश टर्की की भी अमेरिका से अनबन जगजाहिर है. ऐसे में अमेरिका की छटपटाहट का बढ़ना स्वाभाविक है. और यह भी स्वाभाविक है कि रूस  चीन के साथ मिलकर विश्व व्यवस्था पर से अमेरिकी एकाधिकार को खत्म करने के लिए कोई-न-कोई बड़ा कदम जरूर उठाएगा. रूस और चीन का वर्तमान सैन्य अभ्यास इसी दिशा में बढ़ाया गया एक बड़ा कदम माना जा रहा है.


अब तक का सबसे बड़ा मिलिट्री ड्रिल


बताया जा रहा है कि 'वोस्तोक-2018' अब तक हुए सैन्य अभ्यासों में सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास है. 11 सितम्बर से शुरू हुए और 17 सितम्बर तक चलने वाले इस सैन्य अभ्यास में रूस के 3,00,000 सैनिक, 36,000 मिलिटरी वीकल, 1,000 प्लेन और 80 वॉरशिप भाग ले रहे हैं. इस अभ्यास में रूस अपने नए हथियारों का भी प्रदर्शन करेगा जिसमें इस्कांदर मिसाइल, T-80 और T-90 टैंक्स और Su-34 और Su-35 लड़ाकू विमान भी शामिल होंगे। रूस ने इस ड्रिल की तुलना पूर्व सोवियत संघ के 1981 वॉर गेम से की है जिसमें 1,00,000 से 1,50,000 सैनिक शामिल थे। साथ ही यह सोवियत काल की सबसे बड़ी मिलिटरी एक्सरसाइज में से एक थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इस ड्रिल में हिस्सा ले रहे हैं. इन दोनों नेताओं का एक साथ होना और वह भी एक बड़ी मिलिट्री ड्रिल में, कहीं न कहीं तो शक अवश्य पैदा करता है.


कौन किस खेमे में होगा?


यह एक बड़ा ही रोचक सवाल है. शीत युद्ध के दौरान जिस प्रकार से विश्व दो ध्रुव में बंटा हुआ था और जिसमें एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और दूसरे का सोवियत संघ, उस परिस्थिति में काफी बदलाव आ गया है. इसमें बदला नहीं है तो वह है सिर्फ नेतृत्व करने वाला. आज अगर युद्ध होता है तो दुनिया को दो ध्रुवों में तो बंटना ही होगा परन्तु दोनों ध्रुवों के नेतृत्वकर्ता अमेरिका और रूस ही होंगे. हाँ, रुसी खेमे में चीन एक महत्वपूर्ण भूमिका में होगा. जहाँ तक अमेरिका का सवाल है तो उसका पलड़ा आज भी भारी रहेगा, भले ही वह मध्य-पूर्व वाले संघर्ष के क्षेत्रों में रूस से पिछड़ रहा है. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सहित नाटो के सभी देश अमेरिका का साथ देंगे. कनाडा और लातिन अमेरिकी देशों का सहयोग भी अमेरिका को मिलेगा. अफ्रीका के देश भी अमेरिका के साथ होंगे. एशियाई देशों में चीन की दादागिरी से हर कोई त्रस्त है. जापान और दक्षिण कोरिया खुले तौर पर अमेरिकी खेमे में हैं. केवल दक्षिण चीन सागर से संबंध रखने वाले देश ही नहीं बल्कि पूर्व और दक्षिण एशिया के देश भी चीन की विस्तारवादी नीति से भयभीत हैं. पाकिस्तान एक अपवाद है जो चीन के चंगुल में बुरी तरह से जकड़ता जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि अगर युद्ध होता है तो पाकिस्तान दोनों खेमों के लिए निर्णायक युद्ध का मैदान होगा और पाकिस्तान का अस्तित्व हमेशा के लिए मिट जाएगा.


भारत क्या करेगा?


अगर विश्व युद्ध की नौबत आती है तो भारत को मजबूरन इस युद्ध में शामिल होना पड़ेगा. स्पष्ट है कि चीन और पाकिस्तान जब रूस के साथ होंगे तो भारत को अमेरिकी खेमे में जाना पड़ेगा. इस युद्ध में भारत को अपनी दोनों सीमाओं यानि उत्तर और पश्चिम की रक्षा करनी होगी. अमेरिकी खेमे में होने की वजह से चीन और पाकिस्तान सबसे पहले भारत पर ही आक्रमण करेंगे. युद्ध के शुरूआती दौर में भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. भारत को संभावित युद्ध में बैकफुट पर तबतक रहना होगा जबतक अमेरिकी गठबंधन की सैन्य और शस्त्र सहायता यहां तक नहीं पहुंचती है. आधुनिक युद्ध तकनीक से लैश इजरायल की इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका होगी और यह भी तय है कि इजरायल भी अमेरिकी गठबंधन का हिस्सा होगा.


बहरहाल, रूस और चीन के सैन्य अभ्यास 'वोस्तोक-2018' से अमेरिकी खेमा सतर्क हो चुका है. निकट भविष्य में विश्व युद्ध हो या न हो परन्तु इतना तो तय है कि रूस के इस कदम से तनाव बढ़ेगा. फिर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चीन जैसे विस्तारवादी सोच वाला देश अपने स्वार्थ के लिए कभी भी अपने पड़ोसियों को निशाना बना सकता है. फिर आज पाकिस्तान में जो हालात बन रहे हैं उससे निकलने के लिए अगर वह भारत पर किसी-न-किसी बहाने हमला कर बैठता है तो इसकी परिणति भी विश्व युद्ध की विभीषिका बन सकती है.