#मी टू : मैडम! आरोप के साथ पूरी सच्चाई भी तो बताइए...

सेक्सुअल हरैसमेंट यानि यौन उत्पीड़न केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए एक अभिशाप है परन्तु क्या ग्लैमर की दुनिया में, जहाँ सफलता पाने के लिए अधिकतर महिलाएं न केवल कोम्प्रोमाईज़ और समर्पण करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं बल्कि साम,दाम, दंड, भेद आदि जैसे सभी कृत्य में भागीदार होती हैं, उन सभी के द्वारा एक लंबे समय बाद अपने सहयोगियों पर सेक्सुअल हरैसमेंट का आरोप लगाना न केवल हास्यापद बल्कि नैतिकता पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.




मी टू यानि मैं भी यानि वो सभी यह कह रहीं हैं कि मैं भी 10 या 20 साल या उससे भी पहले सेक्सुअल हरैसमेंट का शिकार हुई हूँ. सही मायने में कहा जाय तो मी टू कहने वाली यह वह जमात है जो अपने करियर के शुरुआती दिनों में कुछ भी कर सफलता की सीढियां चढ़ना चाहती थी. यह वही ग्लैमर की दुनिया की जमात है जिसे सुर्खियाँ बटोरने के लिए अंग प्रदर्शन से लेकर अवैध अफेयर तक से कभी परहेज नहीं रहा. आश्चर्य है कि फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि वर्षों बाद इन सभी को अपने उत्पीड़न की याद आ गयी और वह खुलेआम यह स्वीकारने लगी कि उसका 'कभी' यौन उत्पीड़न हुआ था. इस खुलासे के कई मायने हो सकते हैं. हो सकता है कि वो सभी किसी पुरानी बात का खुन्नस निकाल रही हों या फिर इनमें से कई ब्लैकमेल की मानसिकता से प्रभावित हों. हालाँकि यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि इस अभियान की यही एक-दो वजहें हों. परन्तु इस अभियान को सवालों के कटघरे से यूँ ही मुक्त नहीं किया जा सकता.


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