जेएनयू छात्र संघ चुनाव परिणाम के आखिर संकेत क्या हैं?

'वामपंथ विचारधारा की पाठशाला' जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पिछले दिनों हुए छात्र संघ चुनाव में वामपंथी छात्र संगठनों ने एक ही बैनर के नीचे खड़े होकर राष्ट्रवादी विचारधारा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) को जरूर हरा दिया है परन्तु जेएनयू कैंपस के जो हालात हैं और जिस हालात के डर से कल तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे चार वामपंथी संगठन एकजूट होकर एबीवीपी को हराने के लिए कमर कसने पर मजबूर हुए वह उनकी जीत से कहीं बड़ी नैतिक हार मानी जानी चाहिए.



इसमें कोई शक नहीं कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक ऐसा संस्थान हैं जहाँ छात्र ज्ञान की एक नई ऊंचाई को छूते हैं. बौद्धिक क्षेत्र में यहां से पढ़कर निकले छात्रों का डंका बजता है. जैसे यहां के बौद्धिक वातावरण में विविधता देखने को मिलती है वैसे ही यहां का छात्र संघ का चुनाव अभियान भी विविधतापूर्ण रंगत वाला होता है. यहां का छात्र संघ चुनाव अपने आप में एक अनोखेपन का अहसास कराता है. चुनाव की पूरी प्रक्रिया छात्र समुदाय की देखरेख में ही संपन्न होते हैं. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान एक तरफ जहाँ धारदार भाषणों का दौर चलता है वहीँ दूसरी ओर कैंपस से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर उम्मीदवारों के बीच बहस का भी आयोजन किया जाता है. वैचारिक तौर पर यहां के छात्र तीन वर्गों यानि वामपंथ, मध्यमार्ग और दक्षिणपंथ में बंटे रहते हैं.